Raksha Bandhan: कौन है भद्रा‚ जिसके कारण हुआ रावण के साम्राज्य का विनाश‚ इसके साए में क्यों राखी बांधने से डरती हैं बहनें? Read it later

Raksha Bandhan
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Raksha Bandhan Kab Hai: इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व (Raksha Bandhan fest) 11 अगस्त गुरुवार को मनाया जाएगा। इस वर्ष राखी पर भद्रा की छाया पाताल लोक में रहेगी। ऐसे में इसका इसका पृथ्वी पर शुभ और शुभ कार्यों पर कोई असर नहीं होगा। मान्यता है कि रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) पर भाद्र की छाया में भाई की कलाई पर बहनों की ओर से राखी बांधना अशुभ माना जाता है। ऐसे में हम आज आपको इसी मान्यता के बारे में बताते हैं कि आखिर कौन है भद्रा और बहने क्यों इसके साए में बहने भाईयों को राखी बांधने से बचती हैं।

Raksha Bandhan 2023:  राखी के इस फेस्टिवल पर लोग भद्रा के साए को लेकर काफी उलझन की स्थिति में रहते हैं। ज्योतिषिय मान्यता के अनुसार इस साल भद्रा का साया पाताल लोक की ओर रहेगा।  ऐसे में पृथ्वी लोक पर होने वाले शुभ और मांगलिक कर्मकांडों पर इसका कोई प्रभाव  नहीं रहने वाला है।  बता दें कि हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार  रक्षाबंधन पर्व (Raksha Bandhan festival) पर बहनें भद्रा के साए में भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं तो इसे अच्छा नहं माना जाता या कहें कि ये अपशकुन माना जाता है।

 

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आखिर कौन है भद्रा? (who-is-bhadra?)

शास्त्रों के मुताबिक, भद्रा सूर्य देव की पुत्री हैं और ग्रहों के सेनापति और न्यायाधीश शनिदेव की बहन है।  शनिदेव की तहर ही भद्रा का स्वभाव भी कठोर माना गया है।  इनके व्यवहार और स्वभाव को जानने के लिए और साथ ही उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने पंचांग में एक खास स्थान निर्धारित किया है। ऐसे में ब्रह्मा जी के बनाए इस काल गणना में के अनुसार भद्रा काल के  साए में शुभ या मांगलिक कार्य‚ वहीं यात्रा और किसी भी तरह के निर्माण कार्यों को निषेध माना गया है।

 

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भगवान ब्रह्माजी के आदेश से भद्रा, काल के एक अंश के रूप में ही विराजित रहती है। और अपनी उपेक्षा या अपमान करने वालें जातकों के कार्यों में विघ्न डालकर विपरीत प्रभाव देती है। यही कारण है कि श्रावण मास (सावन का महीना) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर जब भद्रा का साया विधमान रहता है, तब भाईयों की कलाई पर कभी राखी (Raksha Bandhan) नहीं बांधने का विधान है।

 

Raksha Bandhan 2022
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 भद्रा में कौनसे कार्य निषेध और कौनसे किए जा सकते हैं (What actions are prohibited and which can be done in Bhadra)

अशुभ भद्रा काल में विवाह संस्कार, मुण्डन, गृह प्रवेश पूजन, यज्ञ, शुभ कार्य के लिए यात्रा, पर्व, नया कार्य आदि शुरू नहीं करना चाहिए। लेकिन भद्रा किसी पर मुकदमा करने, शत्रु से युद्ध करने, राजनीतिक कार्य को करने, सीमा पर युद्ध लड़ने या किसी का ऑपरेशन कराने (शल्य चिकित्सा), वाहन खरीदने आदि के लिए शुभ होती है।

 

इसलिए हुआ था रावण के साम्राज्य का विनाश (That’s why the destruction of Ravana’s empire happened)

हिंदू सनातन धर्म में ब्रह्माजी के द्वारा तैयार किए गए हिंदू पंचांग के कुल 5 प्रमुख अंग बताए गए हैं- ये हैं तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसमें करण अंग का खास स्थान माना गया है। इनकी संख्या 11 होती है और इन 11 करणों में से 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। ऐसे में भद्रा के साए में किसी भी तरह का शुभ कार्य करने से जातक बचते हैं।

मान्यता है कि लंकापति रावण की बहिन सूर्पनखा ने भद्रा के साए में ही रावण को राखी बांधी थी और इसके फलस्वरूप उसके साम्राज्य के साथ स्वयं रावण का भी विनाश हो गया था। हालांकि ये भी सत्य है कि रावण की मृत्यु भगवान श्रीराम के हाथों ही तय थी। ये सब पहले से तय था और इसी तरह भद्रा के साए में सूर्पनखा का रावण को राखी बांधना (Raksha Bandhan) भी तय था।

 

Raksha Bandhan 2022
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किस समय रहता है भद्रा का अशुभ प्रभाव? (what time does the inauspicious effect of Bhadra?)

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार भद्रा विभिन्न राशियों में रहते हुए तीनों लोकों का भ्रमण करती रहती है। इन तीनों लोकों की यात्रा के दौरान जब ये मृत्युलोक में निवास करती है तो भद्रा को शुभ कार्यों में बाधा और सर्वनाश का कारण बनती है। ज्योतिषियों के अनुसार भद्रा का कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में रहते हुए विष्टी करण योग बन जाता है  और इसी समय भद्रा मृत्यु लाेक यानी कि पृथ्वी लोक में ही निवास करती है।  ऐसे में धरती पर समस्त शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित माने गाए हैं।

 

जातक ऐसे बच सकते हैं भद्रा के अशुभ प्रभावों से (Avoid inauspicious effects of Bhadra in this way)

भद्रा के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए भद्रा के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भद्रा के बारह नामों का स्मरण करने का विधान है। भद्रा के बारह नाम इस प्रकार हैं- धन्य, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानाना, कालरात्रि, महारुद्र, विष्टी, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुरक्षयकारी भद्र।

 

 

 

 

Disclaimer: खबर में दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित है। थम्सअप भारत किसी भी तरह की मान्यता की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि किसी भी धार्मिक कर्मकांड को करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श जरूर लें।

 

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